आस्था 

माजीसा, माई जी और माँ के प्रति मेरी जो आस्था है, उसे व्यक्त करने के लिये मेरे पास शब्दो का भंडार नहीं है। मगर ये भी सत्य है, मैं अपने भावों को व्यक्त करने से रोक नहीं पा रहा हूँ, क्योंकि मेरी आस्था ने ही मुझे स्तुति लिखने की प्रेरणा दी है और मैंने अपने मन के उद्गार को माजीसा के चालीसा, माई जी के इक्तीसा और बाई का नजरिया के रूप में लिख पड़ा। मेरी निगाहों में आस्था मतलबः-
इंसान के अंदर से निकली वो ख़ूबसूरत तरंग है जो दिल और दिमाग से नहीं, मन और मस्तिष्क से नहीं बल्कि आत्मा से निकली तरंग है जो समर्पण और श्रद्धा के साथ विधाता से मोहब्बत कराती है। आस्था ही तो है, जो इंसान का भगवान से साक्षात्कार कराती है।

 

तेरी ही कृपा है
माजीसा तू हरदम मेरे साथ
मेरे श्वांस में बसी है तू
तेरे बिना मैं शव समान
(माजीसा का चालीसा से)

सब में तू समाई है माई
बस्तर में तू छाई है माई
तूने बस्तर में मुझे आवाज दी
मेरे जीवन को नई परवाज़ दी
(माजीसा के इक्तीसा से)

नज़रिया
तूने मुझे हाथ पकड़कर
चलना सिखाया
प्रथम गुरू बनकर
गुरू से मिलाया
अब बड़ा हो गया हूँ
मुझे तेरी ज़रूरत नहीं
दुनियादारी देखकर
दौड़ने लगा हूँ
दुनियादारी देखकर
थक गया हूँ
बस! अब कुछ पल
ठहरना चाहता हूँ
माँ ! मुझे अपनी गोद में लेकर
मेरी सूरत
मेरी निगाहें
बदल दे !
नहीं चाहिए मुझे
दुनिया का नूर
माँ! बस मुझे
अपनी निगाहों का नज़रिया दे दे!

(बाई का नजरिया से)

One response to “आस्था—”

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