इंसानियत ख़तरे में
लुटेरे खु़दा को लूट रहे हैं,
इंसान को लुटने से बचाएं, तो कैसे?
अपने, अपनों के ख़ून के प्यासे हो गये हैं
गैरों के जान बचायें तो, बचायें कैसे?
ख़ुद से ख़ुद डरने लगा है
बीवी-बच्चों को बचायें तो, बचायें कैसे?
गिरना इंसान की फ़ितरत हो गई है,
इंसानियत को अब बचायें तो बचायें कैसे?
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