एक उम्मीद-नया वर्ष
किस क़दर
गुज़री ज़िंदगी
हमें याद नहीं
हमें ना ग़म
ना शिकवा
बीती ज़िंदगी का
माना लाख गलतियाँ
की हमने
सौ जख़्म खाये
फिर भी
कोसों दूर रही
मंज़िल हमसे !
आज इसी उम्मीद में
अपने आप को
नये वर्ष में ले जाऊँगा
अब हर पल नयी आशा के साथ बिताऊँगा
और कुछ कर दिखाऊँगा
मंजिल तक जरूर पहुँच जाऊँगा ।
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