जीवन-एक दृष्टिकोण
जीवन को समझना
उतना ही मुश्किल है
जितना ख़ुद को समझ लेना
हम चाहते क्या हैं?
हमें ही नहीं मालूम
क्या सारी दौलत,
सारी ख़ुशी
सारी शौहरत
चाहत है हमारी?
यदि नहीं,
तो ख़ुद को समझें कैसे?
ख़शी के दो पल
यदि नहीं मिले हमें तो
सारी दौलत, शौहरत और ख़ुशी
किस काम की?
सहज, स्वाभाविक जीवन नहीं हमारा
तो जीवन किस काम का?
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